आज कल हर कोई बाँर्डर में उलझा हुआ है, चाहे वो रशिया और अमेरिका जैसे बडे़ देश हो या छोटे देश । यँहा तक कि अपने देश कि पोलिटीकल पार्टियो से लेकर पुलिस् तक, हर तरफ़ सबके सामने बाँर्डर कि समस्या है ।
बहार के बारे में तो क्या बात करे, अपने घर के अन्दर इस समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है । बात करते है दिल्ली की । क्योकि मुझे लगता है जितनी समस्या दिल्ली के अन्दर है शायद ही कही होगीं ।
पहले बात दिल्ली सरकार और एम.सी.डी. के बारे में । दिल्ली में बरसात होने के बाद आज कल आपको अलग ही नजारा देखने को मिलेगा । पूरी दिल्ली में शायद ही कोई सड़्क हो जहाँ कोई बड़ा गड्डा नही बन गया हो , जगह-२ दिल्ली कि सड़्के उधडी पड़ी है । स्कुटर ,बाईकर्श उस पर फ़िसल रहे है और गाड़िया आपस में भिड़ रही है । संक्षेप में कहे तो दिल्ली शहर कम बीहड़ ज्यादा लग रही है ।
अब दिल्ली में में दो सरकारे काम कर रही है एक तो है दिल्ली सरकार जो कि कांग्रेस की है और दूसरी है एम.सी.डी. जिसमें कि बी.जे.पी. है । बाँर्डर का झगड़ा यही से चालू होता है । एम.सी.डी. बोलती है कि हमारी सड़के खराब नही है और जो सड़्के खराब है वो पी.ड्ब्लु.डी. के अन्डर मे आती है । दिल्ली सरकार कहती है कि सारी सड़के एम.सी.डी. की है । कही किसी सड़्क का कोई हिस्सा एम.सी.डी. का है तो दूसरा हिस्सा पी.ड्ब्लु.डी. का । इस बाँर्डर के चक्कर में सड़के रिपेयर नही हो पा रही है और दुर्घटनाये लगातार बड़ रही है ।
दिल्ली पुलिस भी कुछ कम नही है । कुछ समय पहले दिल्ली के निजांमुदीन ब्रिज पर कोई एक्सिडेन्ट हो गया । दुर्भाग्यवस जिस व्यक्ति का एक्सिडेन्ट हुआ , वो बिल्कुल ब्रिज के बीच में हुआ । राह चलते लोगो द्वारा पुलिस को फोन किया गया । अब समस्या फ़िर वही बाँर्डर की थी ।पुलिस वाले उस व्यक्ति को अस्पताल पहुचाने कि जगह बाँर्डर के चक्कर में उलझे रहे और उस व्यक्ति ने समय पर उपचार न मिलने के कारण दम तोड़ दिया ।
दूसरा मामला दिल्ली से यू.पी. के बीच डी.एन.डी. फ़्लाईवे का है । इंन्डिया टुडे ग्रुप के 104.8 रेडिओ म्याऊ कि कुछ इम्प्लाई जो कि तीन लड़किया थी , अपनी फ़्रेन्ड कि पार्टी से रात को टैक्सी से दिल्ली कि तरफ़ आ रही थी । टैक्सी वाले ने पी हुई थी, लड़्कियो को देख कर उसने टैक्सी दिल्ली कि बजाय ग्रेटर नोयडा मे घुमा ली । लड़्कियो को शक होने पर उन्होने ड्राईवर को काबू कर लिया और खुद टैक्सी ड्राईव कर वापस डी.एन.डी. पर आ कर पुलिस को फोन किया । अब फ़िर बाँर्डर कि समस्या । लड़्कियो को बोला गया पहले ये बताइये आप दिल्ली पुलिस की जद में है या नोयडा पुलिस की । लड़्कीयो के लाख रिक्युएस्ट करने पर भी जब बात नही बनी तो उन्होने अपने दोस्तो को फोन कर घटना कि सूचना दी । दोस्तो ने पुलिस पर दवाव बनाया , क्योकि ये लोग मिडिया से जुड़े हुये थे इस लिये पुलिस कुछ हरकत मे आई और ड्राईवर को अरेस्ट किया ।
ये सब कुछ पड़ने और सुनने के बाद मै भगवान से यह दुया करता हू कि, “ हे भगवान मुझे कभी बाँर्डर के चक्कर में ना फ़साये, बल्कि कोई भी इस चक्कर में न पडे़ ।

टी.आर.पी. का खेल ।
मेरे लेख में टी.आर.पी. मीटर की संख्या गलती से ५५०० लिख दी गई थी। किसी साथी के द्वारा सही संख्या मिलने के बाद कृप्या इस संख्या को 9970 पढे ।

आज कल कुछ टी.वी. चैनल अपने प्रोग्राम्स को सिर्फ़ इस आधार पर ज्यादा दिखाने का दावा करते है कि उन प्रोग्राम्स कि टी.आर.पी. सबसे ज्यादा है , और इसी आधार पर वो अपने को नम्बर एक चैनल भी होने का दावा भी करते है । अब चाहे उन कार्यक्रमो से समाज का कितना नुकसान हो , इससे शायद उनको मतलब नही है ।
टी.आर.पी. कैसे केल्क्युलेट होती है ? और टी.आर.पी. का क्या सच है वो आज मै आपको बताता हूँ ।
असल में सारा खेल विज्ञापन का है । टेलीविजन रेटिंग पोइंट ( टी.आर.पी.) एक जरिया है जिससे एक टी.वी. चैनल या प्रोग्राम कि पोपुलेरिटी का पता लगाया जाता है और इस डाटा को ज्यादा से ज्यादा विज्ञापन पाने के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
भारत में इस डाटा को इक्ट्ठा करने कि जिमेंदारी INTAM ( Indian Television Audience Measurement) निभाता है । और अभी भारत में टी.आर.पी. का कार्य सिर्फ़ यही एजेंसी देख रही है ।
INTAM टी.आर.पी. का डाटा इक्ट्ठा करने के लिये दो तरिको का इस्तेमाल करता है ।
पहले तरिके को हम फ़्रीक्य़ुएन्सी मोनिटरिंग कहते है । इसमें कुछ लोगो के घरो में एक मीटर लगा दिया जाता है । यह इलेक्ट्रानिक्स यन्त्र परिवार द्वारा देखे गये प्रोग्राम्स या चेनलो को लगातार रिकार्ड करता रहता है । इससे एजेन्सी के पास नेशनली एक डाटा तैयार हो जाता है ।
दूसरे तरिके में नई तकनीक का इस्तेमाल करते हुए चैनल या प्रोग्राम्स का एक पिक्चर मीटर में स्टोर कर दिया जाता है और जब परिवार वाले इसको देखते है तो यह एक डाटा के रूप में तैयार हो जाता है जिसको की हम टी.आर.पी. बोलते है ।
अब सबाल उठता है कि आखिर यह सैम्पिल कितने घरो से उठाया जाता है ? तो आपकॊ जान कर आश्च्रर्य होगा कि पूरे देश में 5500 घरो से ही यह सैम्पल उठाये जाते है । अब एक अरब कि जनसंख्या वाले देश में सिर्फ़ यह 5500 लोग तय करते है कि हमें कौन सा क्रार्यक्रम देखना है ।
और क्या इन 5500 लोगो के बल पर ही चैनल अंधविश्वास, क्राईम आदि के प्रोग्राम्स बाकी आबादी पर थोप रहे है । इस पर विचार करने कि जरुरत है ।
बड़ी -२ कंम्पनिया जो टी.आर.पी. के आधार पर अपने विज्ञापन को चैनलो पर देती है उनका भी देश के लिये यह फ़्रर्ज बनता है कि वो देखे ,उनके किस कदम से समाज का कितना भला होने वाला है और अगर सभी लोग अपनी जिमेदारी का निर्वाह करे तो एक दिन समाज से अंधविश्वास का नाम इस देश से मिट सकता है ।

मैने टी.आर.पी. के बारे में इतनी डिटेल इस लिये दी है कि जॊ पाठ्क इस से अन्जान है या जिन को इसका पता नही है वो जान सके ।

आज हमारा देश आजादी के साठ साल पूरे कर चुका है । आज हम विश्व की एक तेजी से उभरती हुई अर्थव्यवस्था है । हमारे लोग संसार में लगातार अपनी पहचान बना रहे है । आज विश्व भारत को जानने लग गया है । यह सब जब हम देखते है तो हमारा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है , और हमे भारतिय होने पर गर्व होता है ।
लेकिन जब हम गहराई से सोचते है तो हमे एक खोकलापन भी दिखाई देता है ,तब मन में विचार आता है कि , क्या हम ( मतलब एक आम भारतिय ) सच में उतने आजाद है ?
इस सबाल को उठाने के कई कारण है ।
1. क्या आज एक आम आदमी देश के किसी भी पुलिस थाने में आसानी के साथ अपनी रिपोर्ट लिखवा सकता है ?
2. क्या किसी सरकारी दफ़्तर में बिना रिश्वत के कोइ काम कराया जा सकता है ?
3. क्या कोइ एम.पी. ,एम.एल.ए. , काउन्सलर , सरपंच अपने इलाके का काम ईमान्दारी के साथ करता हुआ मिलता है ?
4. क्या कोइ नेता देश की खातिर , लोगो को बांट्ने की राजनीति बंद कर सकता है ?
5. क्या कोइ ईमान्दार अधिकारी अपना काम ईमान्दारी से कर पाता है ? क्या उसको उतनी आजादी होती है ?
6. देश मे क्या खेलो में राजनीति ही हावी रहेगी ? क्या खेल अधिकारी, खेलो के लिये मिलने वाले पैसे पर अय्यासी बंद करेगें ?
7. क्या देश को ओलंपिक में वो स्थान मिलेगा जो आज अमेरिका,चीन या रुस को प्राप्त है ?
8. क्या क्रिकेट का बोलवाला खत्म होगा ?
9. क्या लोग ईमान्दारी से अपनी कमाई पर पूरा टैक्स देगें ?
10. क्या गरीबी , भ्रष्टाचार इस देश से खत्म होगा ?
अगर मेरे इन सबालो का जवाब हाँ में है तो , हाँ हम आजाद है वर्ना हम आज भी हम उन लोगो के गुलाम है जो हम पर हुकुमत करते है । हमारे हर कदम पर रोड़ा अटकाते है ।
और आज हमें कसम खानी चाहिए कि अगली जंग उन्ही लोगो के खिलाफ़ लड़ी जायेगी । बस इन्तजार है एक मंगलपांडे का ।

इन्कलाब जिंदाबाद