जयपुर की घटना दिल दहला गई । न्यूज देख कर मन बहुत उदास हुआ , फ़िर दिमाग अलग-२ सवाल करने लगा कि क्या ये न्यूज उन आतंकवादीओ तक पहुँच पा रही होगीं ? क्या वो इसे देख रहे होगें ? जब हमारा मन विचलित हो रहा है तो क्या उनका भी दिल कुछ बोल रहा होगा ? साथ में जबाव भी मिल गया कि बिलकुल ये खबर वो जरूर देख रहे होगें, बल्कि वो अपने क्र्त्य पर खुशियां मना रहे होगें ।
आखिर समाज में ये आतंकवादी कँहा से आ जाते है ? जो लोगो का सब कुछ लूट लेते है। बच्चो को अनाथ बना देते है, पिता से उसका सहारा छीन लेते है, औरतो को विधवा बना देते है । पता नही कितने ही रिस्तॊ का वो खून कर देते है । ये खून की होली खेलने वाले लोग आखिर पनपते कैसे है ? आखिर इस फ़सल को कौन पानी देता है ?
इस सवाल का जबाब है , शायद समाज !
हर आदमी जन्म से आतंकवादी नही होता , समाज ही उसकॊ पैदा करता है ओर समाज ही उसको सींचता है। और जब उनकी फ़सल कटती है तो हमें मुम्बई, उत्तरप्रदेश ,दिल्ली, ओर जयपुर जैसे हादसो का सामना करना पड़ता है ।
माना पड़ौसी देश इसको शह देता है , लेकिन हम भी तो उसको पनपने का मौका देते है , क्यों नही सरकारे उन इलाको में , जहाँ आतंकवाद का जोर सबसे ज्यादा है , लोगो को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रही ? उनकी माली हालत सुधारने के लिये सरकार क्या कर रही है ? क्यों उनको ऎसा अहसास होने दिया जा रहा है कि वो इस देश से कटे हुए है ? कही न कही पोलिटिक्स ओर ब्यूरोक्रेशी ने ही देश का ये हाल कर दिया है ।
आज देश धर्म , श्रेत्र ,भाषा, जात-पात , आदि के नाम पर बंटा हुआ है , ओर उसको हमारी पोलिटिक्स हवा देती है । ब्यूरोक्रेशी हमारी इतनी भ्रष्ट है कि वो सही आदमी तक उसका हक पहुचने नही देती । दुश्मन देशो को ओर क्या चाहिये , उनको मौका मिलता है हमारे युवाओ को बर्गलाने का , समाज से गुस्साये इन लोगो का बड़ी आसानी के साथ ब्रेन-वाश कर दिया जाता है । ओर ये लोग अपने ही भाईओ के दुश्मन बन बैठ्ते है ।
अगर आप पीछे मुड़ कर देखे तो इन घटनाओं के लिये जिम्मेंदार वो लोग जो इसका प्लान बनाते है या कहें मास्टर माइंड होते है ,शायद ही पकड़ में आते है । पकड़ में आते है वो लोग जिनकों कुछ पैसा दे कर , धर्म, श्रेत्र, जात-पात के नाम पर आतंकवादी बनाया जाता है । उनको ज्यादा से ज्यादा आतंक फ़ैलाने के लिये छोड़ दिया जाता है ।
कुछ लोग ये पढ कर बोलगें " फ़िर सुबह होगी " । लेकिन मै कहता हूँ , पता नही कब सुबह होगी ?
लेकिन मै आशावादी हूँ , और मानता हूँ , जिस दिन हमारे देश की पाँलिटीक्ल पार्टियाँ ओर ब्यूरोक्रेशी देश के बारे में सोचनें लगेगीं, उस दिन जरूर सुबह होगी ।