नैतिकता के नाते कभी भी किसी व्यक्ति कि प्राइवेट लाईफ़ के ऊपर कोई कमेंट्स नही करना चाहिए । लेकिन जब आदमी सेलेब्रिटी हो जाता है या कहे पब्लिक हो जाता है , तो वो जो काम करता है या वो जो कहता है , उस का सीधा-२ प्रभाव लोगो पर पड़ता है । लोग उस सेलेब्रिटी की एक तस्वीर अपने जहन मे बना लेते है ।
कुछ इसी तरह की तस्वीर हिन्दी फ़िल्म जगत के दो क्रिएटिव एक्ट्रर आमिर खान ओर शाहरुख खान कि लोगो में बनी हुई है । आमिर के बारे में अगर कहें तो जब उनका ,अपनी पत्नि के साथ तलाक हुआ तो लोगो को बहुत अट्पटा लगा । क्योकि अक्सर हम अखबार में पड़ते थे कि वह किस तरह अपनी पत्नि व बच्चों को स्कूल व आफ़िस छोड़ कर आते थे । वो जिस प्रकार से अपने परिवार के साथ जुड़े थे उसका एक अच्छा सन्देश लोगो तक जाता था । लेकिन जैसे ही तलाक कि खबर आई लोग आमिर को विलेन की तरह देखने लगें । जिस तरह फ़िल्म इन्ड्स्ट्री में गाँशिप होती है , आमिर को लोग उससे अलग रखते थे, लेकिन आमिर ने अपनी इमेंज पर बट्टा लगवा लिया ।
फ़िर आमिर कि एक फ़िल्म ,तारें जमिंन पर ’ आई । लोगो को फ़िर एक नया आमिर देखने को मिला ओर पुरानी बातॊ को लोगो ने भुला दिया । लेकिन हाल के प्रकर्ण ने आमिर को फ़िर एक बार कट्घरे मे खड़ा कर दिया है ।
आमिर अपने ब्लाँग में लिखते है कि किस प्रकार उन्होने एक कुत्ता पाला हुआ है ओर उसका नाम शाहरुख रखा हुआ है । आगे आमिर लिखते है कि वो शाहरुख नाम का कुत्ता किस तरह उनके पैरो को चाटता है ओर कैसे वो उसको बिस्कुट खिलाते है। क्या ये बाते डिटेल में लिखनी जरूरी थी ?
चलो नाम पर तो किसी का पेटेंट नही है लेकिन क्या आमिर सारी मर्यादाये भी भूल गये है । आखिर उन्होने ये बाते अपने ब्लाँग में क्यो लिखी ? क्या वो शाहरुख को निचा दिखाना चाहते है ? या किसी बात कि जलन है ? आमिर को इसका खुलासा भी अपने ब्लाँग में करना चाहिए। इससे पहले भी वो शाहरुख के बारे में बहुत सी बातें कह चुके है ।
शाहरुख अगर आमिर की बातॊ का जवाव उसी अन्दांज में देते , तो हो सकता था इससे शाहरुख कि इमेंज भी खराब होती । लेकिन उन्होने ऎसा नही किया । उन्होने उसको हँसी मे उड़ा दिया ।
आदमी खाली काम से ही बड़ा नही होता , उसको दिल से भी बड़ा होना पड़ता है । तभी वो लोगो के दिलॊ पे राज कर सकता है । ओर यही बात आमिर खान को समझ लेनी चाहिए । मै भी आमिर खान का बड़ा फ़ेन रहा हूँ , लेकिन शाहरूख कि तुलना में आमिर को अभी थोड़ा मेच्योर होने कि जरुरत है।

जयपुर की घटना दिल दहला गई । न्यूज देख कर मन बहुत उदास हुआ , फ़िर दिमाग अलग-२ सवाल करने लगा कि क्या ये न्यूज उन आतंकवादीओ तक पहुँच पा रही होगीं ? क्या वो इसे देख रहे होगें ? जब हमारा मन विचलित हो रहा है तो क्या उनका भी दिल कुछ बोल रहा होगा ? साथ में जबाव भी मिल गया कि बिलकुल ये खबर वो जरूर देख रहे होगें, बल्कि वो अपने क्र्त्य पर खुशियां मना रहे होगें ।
आखिर समाज में ये आतंकवादी कँहा से आ जाते है ? जो लोगो का सब कुछ लूट लेते है। बच्चो को अनाथ बना देते है, पिता से उसका सहारा छीन लेते है, औरतो को विधवा बना देते है । पता नही कितने ही रिस्तॊ का वो खून कर देते है । ये खून की होली खेलने वाले लोग आखिर पनपते कैसे है ? आखिर इस फ़सल को कौन पानी देता है ?
इस सवाल का जबाब है , शायद समाज !
हर आदमी जन्म से आतंकवादी नही होता , समाज ही उसकॊ पैदा करता है ओर समाज ही उसको सींचता है। और जब उनकी फ़सल कटती है तो हमें मुम्बई, उत्तरप्रदेश ,दिल्ली, ओर जयपुर जैसे हादसो का सामना करना पड़ता है ।
माना पड़ौसी देश इसको शह देता है , लेकिन हम भी तो उसको पनपने का मौका देते है , क्यों नही सरकारे उन इलाको में , जहाँ आतंकवाद का जोर सबसे ज्यादा है , लोगो को रोजगार के अवसर उपलब्ध करा रही ? उनकी माली हालत सुधारने के लिये सरकार क्या कर रही है ? क्यों उनको ऎसा अहसास होने दिया जा रहा है कि वो इस देश से कटे हुए है ? कही न कही पोलिटिक्स ओर ब्यूरोक्रेशी ने ही देश का ये हाल कर दिया है ।
आज देश धर्म , श्रेत्र ,भाषा, जात-पात , आदि के नाम पर बंटा हुआ है , ओर उसको हमारी पोलिटिक्स हवा देती है । ब्यूरोक्रेशी हमारी इतनी भ्रष्ट है कि वो सही आदमी तक उसका हक पहुचने नही देती । दुश्मन देशो को ओर क्या चाहिये , उनको मौका मिलता है हमारे युवाओ को बर्गलाने का , समाज से गुस्साये इन लोगो का बड़ी आसानी के साथ ब्रेन-वाश कर दिया जाता है । ओर ये लोग अपने ही भाईओ के दुश्मन बन बैठ्ते है ।
अगर आप पीछे मुड़ कर देखे तो इन घटनाओं के लिये जिम्मेंदार वो लोग जो इसका प्लान बनाते है या कहें मास्टर माइंड होते है ,शायद ही पकड़ में आते है । पकड़ में आते है वो लोग जिनकों कुछ पैसा दे कर , धर्म, श्रेत्र, जात-पात के नाम पर आतंकवादी बनाया जाता है । उनको ज्यादा से ज्यादा आतंक फ़ैलाने के लिये छोड़ दिया जाता है ।
कुछ लोग ये पढ कर बोलगें " फ़िर सुबह होगी " । लेकिन मै कहता हूँ , पता नही कब सुबह होगी ?
लेकिन मै आशावादी हूँ , और मानता हूँ , जिस दिन हमारे देश की पाँलिटीक्ल पार्टियाँ ओर ब्यूरोक्रेशी देश के बारे में सोचनें लगेगीं, उस दिन जरूर सुबह होगी ।

आज कल लोगो को अपनी बात रखने का एक बहुत बड़ा जरिया मिल गया है, ओर वो है ब्लाँग । भारत में ब्लाँगिंग अभी इतना पाँपुलर नही है, लेकिन जब से लोगो को अपनी भाषा मे लिखने का मौका मिला है, लोग इसकी ओर आर्कषित हो रहे है ।
ब्लाँगिंग भी एक तरह का समाज है ओर उस समाज को हम ब्लाँगर कहते है । हर समाज कि तरह इसमें अच्छे ओर बुरे दोनो लोग मौजूद है । जब आप विभिन्न तरह के ब्लाँग पड़ते है तो इसका अहसास आपको आसानी से हो जायेगा ।
जहाँ तक अच्छे ब्लाँग कि बात है, मेरे ख्याल से ज्यादातर ब्लाँगर अच्छी ब्लाँगिंग करते है चाहे वो तकनीकी , आर्धिक ,मनोरंजन जगत कि ब्लाँगिंग हो या समाज से जुड़ी बाते ,सब अच्छा लिख रहे है। लेकिन एक मुहावरा है कि एक मछली सारे तालाब को गंन्दा करती है ओर वही सब कुछ ब्लाँगिंग मे हो रहा है।
कुछ ब्लाँग तो इतने फ़ूहड़ है कि मन में आता है कि ब्लाँग कि भी सेंसरशिप होनी चाहिए ,क्योकि कुछ तो इतनी फ़ूह्ड़्ता परोस रहे है कि डर लगता है कि जब बच्चे उनको पड़ते होंगे तो उन पर क्या प्रभाव पड़ता होगा । माना लोगो को लिखने का अधिकार है ओर ब्लाँगिंग का परपस भी वही है लेकिन ये कैसी आजादी कि आप सरे आम गालियां निकाले , गलत बाते कहे ।
जैसे-जैसे हिन्दी ब्लाँगिंग का प्रसार होगा, ज्यादा से ज्यादा लोग इससे जुड़्ते जायेगें ,अपनी बाते रखेगें । अच्छी ओर गलत ब्लाँगिंग से ही हिन्दी ब्लाँगिंग का भविष्य जुड़ा हुआ है ।
उम्मीद है कि भविष्य में हमे अच्छे ब्लाँग पड़्ने को मिलेगें ।

इन दिनो दिल्ली में लूट्पाट ओर हत्याओ कि वारदात तेजी के साथ बड़ रही है हाल के कुछ दिनो में तो इन घट्नाओ के ग्राफ़ ने मंहगाई का रिकार्ड भी तोड़ कर रख दिया है । नेताओ ने महंगाई के लिये ओर पुलिस ने घट्नाओ के लिये बहाने खोज लिये है। नेता कहते हे कि हमारे देश कि जनता तरक्की कर रही है ओर उनका जिवन स्तर भी पहले से बेहतर हुआ है इस लिये जनता ज्यादा खाना खा रही है ,पता नही ये लोग देश कि तरक्की ले लिये गर्व कर रहे है या जनता को कोस रहे है, शुक्र हे इन्होने महंगाई कम करने के लिये जनता को कम खाने कि सलाह नही दी।
इसी तरह एन सी आर कि पुलिस के पास भी अपने तर्क है , वो कहते है कि आज कल प्राँपर्टी के दाम बेतहासा बड़ रहे है, लोगो के पास बहुत पैसा आ गया है इस लिये बारदाते भी बड़ रही है।
दिल्ली पुलिस का तो ओर भी बुरा हाल हें, दिल्ली पुलिस कहती हें कि अपराधी ,अपराध कर के साथ लगे राज्यॊ मे घुस जाते है ओर उनको ढूड्ना मुसकिल हो जाता है।
लेकिन नेताओ से लेकर पुलिस तक यह नही मानते कि उनके मैनेजमेंन्ट कि भी कमी हे । किस तरह नेताओ ओर पुलिस से जनता परेशान है इसके दो उदाहण मै आपको दे सकता हु ओर ये सच्ची घटना है ।
१ . पिछ्ले साल यमुनापार मे पटपड़गंज विधानसभा श्रेत्र के कल्याणपुरी इलाके में पानी की बहुत बड़ी समस्या थी लोग परेशान थे ,लोगो को लगा कि वो स्थानिये विधायक से मिल कर कोई रास्ता खोजें। लोग स्थानिये विधायक के पास गये ओर उनको अपनी समस्या बताई, लोगो ने विधायक को यह भी बताया कि वो सिर्फ़ वोट के लिये जनता के पास आते है , विधायक जी भ्ड़्क गये,बोले जाओ अब वोट दिया है अब मत देना ओर उनको वहा से चलता कर दिया । यही हाल सड़्क आदि का भी है कोई सुनने वाला नही।
२. दूसरी घट्ना में आज कि तारिख मे भी पुलिस कि सरपरस्ती मे गुन्डें फ़ल फ़ूल रहे है, दोनो का काम दिन दूनी चार चोगनी तरक्की पर है । स्थानिये गुन्डें पुलिस को पैसा पहुचाते है ओर बड़े आराम से लूट्पाट करते है , खुले आम जुआ,सट्टा,ड्रग्स आदि का काम चलता है लोकल लोगो से अगर आप बात करे तो आप को एक-एक जगह का पता बता देंगे कि कँहा क्या हो रहा है कौन-कौन लोग कहा-कहा पर किस समय लूट्पाट करते है, लेकिन पुलिस सोई हुई है, क्योकि उसे पता है कि कोइ अगर कमंप्लेट कराने आयेगा तो वो उसे बर्गला के भगा देंगे । आप वहा देख सकते है कि कैसे अपराधिओ का राज चल रहा है ।
जनता त्रस्त ओर पुलिस भ्रष्ट ।

रवीश के ब्लाँग कस्बा में वो लिखते है कि आज दिल्ली मे माइक थेवर आ रहॆ है ओर जो उनसे मिलना चाहे वो दिल्ली के सांगरिला होटल में उनसे मिल सकता है। बात केवल इतनी सी थी, लेकिन एक ब्लाँगर ने जो कमेंन्ट्स रवीश पर किया उससे एक सोच का पता चलता है कि कैसे बहुत लोग अभी भी पुरानी मानसिक्ता मे जी रहे है ,यह वो लोग है जो हर तरफ़ सिर्फ़ अपनो को देखना चाहते है, वो नही सोचते कि समाज मे कोई बदलाव आये ।
यह भी सच है कि सभी लोग एक जैसे नहि होते, कुछ लोग अच्छे भी होते है जो समाज को गति देना पसंन्द करते है ओर रुड़ीवादिता मे विस्वास नही रखते ।
मुझे याद आता है कि कैसे जब मेने अपना कोर्स खत्म किया ओर मुझे कुछ ए़क्स्पीरियन्श कि जरुरत थी , मेने एक अखवार में वेकेन्शी देखी ,जो कि दिल्ली के लाजपत राय मार्केट में किसी कम्पनी के लिये थी । कम्पनी का आफ़िस भी कम्पनी कि तरह कोई बहुत बड़ा नही था , वहा इन्ट्र्व्यू चल रहे थे । इन्ट्र्व्य़ू कम्पनी का माळिक खुद ले रहा था । जब मेरा नम्बर आया तो मेनें अपना रिस्युम उसको दिया अपने बारे मे बताया, उसने मेरी नाँलेज देखी ओर वो सेटिस्फ़ाई नजर आया ।
उसके बाद उसने घुलनसील हो कर मुझसे पूछा कि आपका जो सर नेम हे वो लोग तो ब्राह्मिन होते है मेने इन्कार किया कि नही मै जाटव हु, उसके बाद उसका चेहरा देखने वाला था, अब तक जो मे सिलेक्ट हुआ मान रहा था ,उसने मुझे अचानक मुझे कहा ठीक हे हम आपको फ़ोन पर बता देन्गें अगर आप सिलेक्ट हे तो , वो फोन आज तक नही आया । सिर्फ़ मेरी कास्ट कि वजह से। उसके बाद मे अपनी कास्ट को कोसने लगा था लेकिन मुझे अपने टेलेन्ट पर विस्वास था ।
मुझे एक बड़ी कम्पनी में काम करने का मॊका मिला ,वहा मेरी कास्ट मुझसे नही पूछी गयी ओर आज मे कुशल व्यकि हुँ ।