आज कल समाज को जाग्रित करने के लिये , नये -२ फ़ार्मुलो को अपनाया जा रहा है । इसी कड़ी में The BBC World Service Trust ने भारत में कोन्ड्म का इस्तेमाल बड़ाने के लिये एक कम्पेन चलाया है जिसमे आप अपने मोबाईल में कोन्ड्म-२ रिंग-टोन सुन सकते है। आज कल इस का विज्ञापन आप अपने टी.वी. व रेडियो पर देख और सुन सकते है ।यँहा तक तो ठीक है लेकिन जिस प्रकार जल्दी-२ यह विज्ञापन टी.वी. पर आता है उसका असर लोगो पर हो या न हो लेकिन बच्चो पर जरुर हो रहा है । विज्ञापन बच्चो के मुँह पर चड़ जाते है और यही इस विज्ञापन के साथ हो रहा है । बच्चो के मुँह पर यह विज्ञापन चड़ गया है और वे किसी के भी सामने कोन्ड्म-२ गाने लगते है ।शायद बी.बी.सी. वाले यह नही जानते कि यह लंन्ड्न नही इंन्डिया है और यँहा पर कुछ संस्कार होते है जिनका सब पालन करते है । उनको यह भी जानना चाहिये कि सिर्फ़ कोन्ड्म-२ की रिंग-टोन से ही इसका इस्तेमाल नही बड़ेगा । पता नही हमारे अधिकारी किस तरह इन प्लान्स पर काम कर लेते है और इस तरह का कदम उठा लेते है । समाज को जागरूक करने के और भी तरिके है क्या ये लोग सिर्फ़ इस लिये इन आईडियास को अपनाते है कि वो अग्रेजो के है । समाज के इन जिम्मेदार लोगो को इस बारे में सोचना चाहिये ।

कल जी टी.वी. के कार्यक्रम हल्ला बोल में जो दिखाया गया वो सच में आंखे खोलने वाला था । कल हल्ला बोल का विषय था - ओल्म्पिक में हमारे खिलाडि़ओ का प्रर्दशन

रिपोर्ट में दिखाया गया कि हमारे देश कि स्पोर्ट्स फ़ेडरेशन्स खिलाड़िओ के लिये कितना खर्च कर रही है, और हमारे देश के खिलाड़ी किन हालात में प्रेक्टिस करते है । जिन हालातो से निकल कर खिलाड़ी ओल्म्पिक में जाते है उससे तो लगता है कि यह बात भी अपने आप में बहुत बड़ी है कि वो इतने बड़े आयोजन का हिस्सा बनने के लायक बन पाते है ।

कार्यक्रम देखने के बाद मेंने नेट पर जब स्पोर्ट्स अथाँरिटी आफ़ इन्डिया कि साईट देखने कि कोशिस की तो वो खुली ही नही । मेंने THE MINISTRY OF YOUTH AFFAIRS & SPORTS की साईट पर जा कर स्पोर्ट्स अथाँरिटी आफ़ इन्डिया का लिंक क्लिक किया तो पता चला ऎसी कोई साईट ही नही है । National Sports Federations के मेंम्बर्स कि लिस्ट देखी तो दंग रह गया , ज्यादातर खेलो के सर्वे - सर्वा नेताओ को बनाया हुआ है । पता नही जिन खेलो के वो हेड बने हुये है उन खेलो के बारे में वो कितना जानते होगें ।
सभी खेलॊ सी जुड़ी हुई फ़ेडरेशन्स के अधिकारी जिस तरह लम्बी-२ गाड़ियो में घूमते है और बड़े-२ होटलो मे मिटिंग करते है , और ज्यादातर विदेशो की यात्राओ पर रहने वाले ये अधिकारी खेलो के लिये कितना खर्च कर पाते होगें ये सोचने का विषय है ।
जिन खिलाड़िओ के बल पर ये एसोशियेशन्स चल रही है क्या इन अधिकारिओ ने कभी ये जानने कि कौशिस की है कि खिलाड़ी किन हालात में रह रहे है ? उनको वो सभी सुबिधाये मिल रही है , जिनकी उनको जरुरत है ? आखिर ये लोग फ़ेडरेशन्स से जुड़े हुये कितने क्लबो कि कितने दिनो में विजिट करते है ? आखिर कितना पैसा ये खेल में और कितना मिटिगों में खर्च कर रहे है इस सबाल पर एक आर.टी.आई डाली जानी चाहिये ।
देश के सामने यह सच आना ही चाहिये । हे कोई न्यूज चैनल जो इस पर कोई स्टिंग करे ?
अगर खेलो के नाम पर यू ही रबड़ी बांटी जाती रही तो शायद ही हम कभी खेलो में चाईना के आसपास भी बहुच सके ।